आखिर क्यों पूजा जाता है बट वृक्ष वट वृक्ष की पूजा करने से किसे मिला था पति का जीवन दान वट सावित्री की व्रत कथा आइए सुनते हैं

Razput RK

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पुराने समय की बात है एक राजा हुए करते थे उनके पास एक बेटी थी वह बेटी युवावस्था में आ गई थी और हर एक माता-पिता का दायित्व होता है कि उसकी शादी करें और उसके लिए एक अच्छे वर की जरूरत होती है राजा ने आसपास दूरदराज शहरों कई राजा से संपर्क साधा पर कहीं भी उसे अपनी बेटी का सुयोग ऊपर नहीं मिला राजा बहुत परेशान था राजा की परेशानी गुना देखते हुए

सावित्री ने कहा कि पिताजी मुझे घूमने के लिए जाना है और आप परेशान हो रहे हैं मैं अपने लिए सुयोग पर स्वयं खोज लूंगी सावित्री राजकुमारी और राजकुमारी के साथ सावित्री राजकुमारी की राशियां सूरत में सवार होकर जंगल में प्रस्थान करते हैं सावित्री चारों ओर देखती जा रही थी पर कई रास्ते में जंगल मिले कई जंगलों की टोकरी मिली पर कहीं भी राजकुमारी को अपने योग पर नहीं दिखाई दिया राजकुमारी बड़ी चिंतित थी और आगे बढ़ती जा रही थी

जब राजकुमारी ने देखा की एक जंगल में एक कोई लकड़हारा लकड़ी काट रहा था तो राजकुमारी ने अपने रखने वाले सेवक से कहा कि रतिया ही रोक दो और राजकुमारी सावित्री रथ से उतरती है नीचे और अपनी सहेलियों से बोलती है कि मेरा कुछ समय के लिए मुझे अकेला छोड़ दो और मेरा यहीं पर इंतजार करो मैं आ रही हूं उस लकड़हारा से मिलने तब सावित्री उस लकड़हारा को देखती है तो लकड़हारा का बहुत सुंदर बहुत सुशील उसके दिमाग ज्ञान और तेज से चमक रहा था बस फिर क्या हुआ फिर उसके बाद सावित्री ने उस लकड़हारे से गुहार की बड़े प्रेम से कहा कि हे प्रिय आप नीचे उत्तरीय आपसे बात करनी है

लकड़हारा बड़े सोच में पड़ गया और कुछ मिनट बाद आराम से पेड़ के नीचे आता है और राजकुमारी से बोलता है कि राजकुमारी जी क्या है मेरी जरूरत क्या कोई परेशानी है राजकुमारी ने कहा कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं और मैंने आपको पति स्वीकार कर लिया उस लकड़हारे का नाम सत्यभान था सत्यभान ने कहा कि मैं बहुत गरीब हूं मेरे घर में बूढ़े माता-पिता हैं और घर में गुजारा सिर्फ मैं ही चलाता हूं मेरे माता पिता अंधे हैं उनको कुछ दिखाई नहीं देता है और जो भी मैं दिन में लकड़ियां काटता हूं उसको ही बेच कर अपने जीवन का मैं भरण पोषण करता हूं इसलिए हे राजकुमारी मुझे यह बात आपकी अच्छी नहीं लगी आप और अच्छे राजकुमार देख लीजिए

जब राजकुमारी नया है सुना तो सावित्री ने कहा कि नहीं मैं तो आपसे ही शादी करूंगी आपको ही मैं अपना पति परमेश्वर मान चुकी हूं मैं या तो अपने प्राण यहीं पर त्याग दूंगी

सत्यभान बड़े धर्म संकट में पड़ जाते हैं और बड़े सोच में पड़ जाते हैं सत्यवान ने बड़ी मुश्किलों से कहा यदि राजकुमारी आपको मेरी वर्तमान स्थिति स्वीकार है तो मैं आपसे जो भाई करने का शुभ विचार अपने माता पिता से पूछूंगा सत्यवान अपने माता पिता के पास पहुंचता है और अपने माता-पिता को चरण वंदन करके चरण दबा के पूछता है की है माता हे पिता आज मैं एक बड़ी दुविधा में हूं तब उसके माता-पिता ने कहा कि बेटे क्या है तेरी तो बता क्या कोई जंगल में परेशानी है क्या जंगल में किसी जीव जंतु ने परेशान किया बेटा जल्दी बता मुझसे रहा नहीं जा रहा है

बेटे ने कहा की एक राजकुमारी मुझसे शादी करने के लिए बड़ी आतुर है मैंने कहा मेरी वर्तमान स्थिति खराब है और मेरे माता-पिता हैं और मैं लकड़ी काटकर अपना बड़ी मुश्किल से एक भक्तों का खाना जुटा पाता हूं पर वह राजकुमारी मान नहीं रही है मैं क्या करूं माता पिता ने भी ना शादी करने का सुझाव दिया पर इतने में सावित्री भी वहीं आ गई और सावित्री ने सत्यवान के माता-पिता को सब कुछ समझाया कि मैं भूखी रह लूंगी प्यासी रह लूंगी पर मैंने तो आपके लड़के को अपना पति मान लिया है तो मान ही लिया है तब सत्यभान के माता पिता उस राजकुमारी को आशीर्वाद देते हैं कि ठीक है बेटी यदि नहीं मानती हो तो हमें यह स्वीकार है हमारे लड़के से आप शादी कर सकती हो

राजकुमारी का मन बहुत खुश हो गया और राजकुमारी अपने रथ एवं अपनी सेविकाओं के साथ तुरंत राज महल की ओर प्रस्थान करती है और राज महल में जाकर अपने राजा के प्रति यह बात रखती हैं कि पिताश्री मुझे अपने योग पर मैंने स्वयं खोज लिया है राजा ने इतना सुना और राजा बहुत खुश हो गया और राजा ने तुरंत अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि जाओ उनके लड़के की कुंडली वगैरा सब लेकर आओ जब मंत्री लोग कुंडली लेकर आते हैं तब राजा बिल्कुल भी विलंब ना करते हुए बिल्कुल भी देरी ना करते हुए तत्काल नारद मुनि के पास जाते हैं नारद मुनि जब वह कुंडली को देखते हैं तो नारद मुनि साफ-साफ मना कर देते हैं की इस कुंडली में जो राजकुमारी सावित्री पर खोज कर आए हैं जिसकी है कुंडली है उसकी बहुत अल्प आयु है उसकी मृत्यु 1 वर्ष बाद हो जाएगी इतना राजा सुने राजा को बहुत दुख हुआ एवं मन बहुत दुख हुआ राजा ने अपनी बेटी अपनी लाडली राजकुमारी से कहा की मान्य नारद मुनि ने ऐसा कहा है कि लड़के की उम्र बहुत छोटी रह गई है और यह 1 साल से अधिक जीवित नहीं रह पाएगा इसकी मृत्यु 1 साल के अंदर ही लिखी है

जब सावित्री को यह आघात हुआ मालूम हुआ पर सावित्री ने अपनी बात को नहीं टाला और पिताजी से कहा कि नहीं पता जी मैं शादी करूंगी तो इसी व्यक्ति से करूं चाहे इसकी उम्र 1 साल हो या 1 दिन हो मैंने इसे अपना प्राणनाथ अपना पति परमेश्वर मान लिया है तो पिता श्री मैंने मान लिया है

मैं अपना पति एक बार स्वीकार किया है उसको दोबारा नहीं करूंगी यदि मेरी शादी सत्यभान से नहीं होगी तो मैं इसी समय अपना प्राण त्याग ती हूं

सावित्री की बात राजा सुनकर बड़ा किलचित हुआ और उसने तुरंत आदेश दिया की शादियां की तैयारी प्रारंभ होने लगे राज महल में

बहुत जल्द वह समय भी आ गया जब राजकुमारी की शादी सत्यभान के साथ करा दी गई और बड़े धूमधाम से सत्यभान अपनी पत्नी सावित्री को ले गया पर सावित्री नारद मुनि की बात को सोच सोच कर परेशान थी कि मेरे पति की उम्र सिर्फ 1 वर्ष है वह अपने सास-ससुर की और अपने पति की मन लगाकर बहुत सेवा कर रही थी और अपने पति की भी बहुत सेवा कर रही थी और हर एक महीना गिनती जा रही थी कि अब मेरे प्राणनाथ के सिर्फ 11 महीने बचे हैं आप मेरे प्राणनाथ के अब 8 महीने बचे हैं अब मेरे प्राणनाथ के 5 महीने बचे हैं धीमे धीमे और समय भी आ जाता है जब सावित्री को 12 महीना चल रहा था सावित्री जानती थी कि नारद मुनि की बाड़ी कभी गलत नहीं जाएगी इसलिए जब सत्यवान जंगलों में लकड़ी काटने के लिए प्रतिदिन की भांति जाता है तो सावित्री अपने पति से कहती है अब मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी सावित्री अपने पति के साथ आखिरी महीने में प्रतिदिन लकड़ी काटने के लिए जाती थी और लकड़ियों का बोझ गट्ठा अपने सिर पर लेकर अपने पति सतभान के साथ घर पर आती थी

ऐसे ही चल रहा था सत्यवान की पत्नी और सावित्री दोनों प्रतिदिन की भांति जंगलों में लकड़ी काटने के लिए जाते हैं एक दिन लकड़ी काटते काटते अचानक सत्यवान का सिर दर्द करता है और बोलता है प्रिय मेरा सिर दर्द कर रहा है सत्यवान की पत्नी सावित्री घबरा जाती है उन्होंने कहा है हे प्राणनाथ यदि सर दर्द कर रहा है तो लकड़ियां मैं काट लोगे आप नीचे उतर आई है मैं आपका सर दबा देती हूं जब से अधिक दर्द कर रहा था तो उस वृक्ष पर जिस पर लकड़ी काट रहे थे उस पर कोई पता नहीं था कोई छांव नहीं थी क्योंकि वह सूखा वृक्ष था तो सावित्री पास पर बट वृक्ष लगा था उसके नीचे अपने पति का सिर गोदी में रखकर बैठ जाती है और अपने याद करती है

तपती गर्मी का समय था. घने जंगल में एक बरगद के पीड़े के नीचे एक स्त्री बैठी थी. वह नवविवाहिता लग रही थी, उसकी गोद में पति का सिर था, जिसे वह सहला रही थी. भीषण गर्मी से परेशान और सिर में दर्द के कारण वह लकड़ी काटना छोड़ कर पेड़ से नीचे उतर आया और पत्नी की गोद में विश्राम करने लगा. यह दंपती कोई और नहीं सत्यवान और सावित्री थे. पति की पीड़ा देख सावित्रि को देवर्षि नारद की भविष्यवाणी याद आ गई.

देवर्षि नारद ने सावित्री के पिता अश्वपति से कहा था कि महाराज सत्यवान अल्पायु है, इसलिए इस संबंध को रोक लीजिए. इस पर सावित्री ने अपनी मां की शिक्षाओं के खंडन का भय दिखाया. वह दृढ़ होकर बोली, सती, सनातनी स्त्रियां अपना पति एक बार ही चुनती हैं. इस तरह सावित्री साल्व देश के निर्वासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की गृहलक्ष्मी बनकर तपोवन में आ गई. आज देवर्षि के बताए अनुसार वही एक वर्ष पूर्ण होने वाली तिथि है, जिस दिन उसके पति का परलोक गमन होना तय था. तभी तो सुबह से विचलित मन लिए सावित्री सत्यवान के साथ ही वन में चली आई थी. अभी वह आम के पेड़ से लकड़ियां चुन ही रहे थे कि भयंकर पीड़ा और चक्कर आने के कारण वह जमीन पर गिर पड़े.

🚩यमराज ने हर लिए सत्यवान के प्राण

इतने में यमराज प्रकट हुए, वह सत्यवान की आत्मा को पाश से खींच कर ले जाने लगे. इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए. सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी. तब यमराज ने कहा, ऐसा असंभव है पुत्री, सावित्री ने देवी सीता का उदाहरण दिया कि वह भी तो पति संग वन गईं थीं, तो मैं यमलोक भी चलूंगी. या तो आप मुझे भी साथ ले चलें, या फिर मेरे भी प्राण ले लें. यमराज प्रकृति के नियम विरुद्ध सावित्री के प्राण नहीं ले सकते थे. उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता तू मनचाहा वर मांग ले.

🚩मांग लिया परिवार का संपूर्ण सुख

तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली. यमराज ने कहा तथास्तु, लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी. तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए. उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों. यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो. तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों. यमराज ने कहा तथास्तु.

🚩इसलिए होती है वटसावित्री पूजा

यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे. सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं. आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है. यह सुनकर यम सोच में पड़ गए कि अगर सत्यवान के प्राण वह ले जाएंगे तो उनका वर झूठा होगा. तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया. इस तरह सावित्री ने अपने सतीत्व से पति के प्राण, श्वसुर का राज्य, परिवार का सुख और पति के लिए 400 वर्ष की नवीन आयु भी प्राप्त कर ली. इस कथा का विवरण महाभारत के वनपर्व में मिलता है. यह संपूर्ण घटना क्रम वट वृक्ष के नीचे घटने के कारण सनातन परंपरा में वट सावित्री व्रत-पूजन की परंपरा चल पड़ी.

इसीलिए बट वृक्ष की पूजा का विधान चला आ रहा है

धन है हमारे भारत की धरोहर भारत की संस्कृति और सत्यवान सावित्री जैसी माताएं

सभी को प्रणाम

धन्यवाद

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